Tuesday, February 21, 2012

प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत


परिचय: यूनान का महान दार्शनिक प्लेटो ( 428 .पू. - 347 .पू.) एक मौलिक चिंतक के रूप में विख्यात है। वह सुकरात का शिष्य था। अरस्तू इसका शिष्य है। होमर का समकालीन। प्लेटो के समय में कवि को समाज में आदरणीय स्थान प्राप्त था। वह (कवि) उपदेशक, मार्गदर्शक, संस्कृति का संरक्षक माना जाता था।
रचनाएँ: दि रिपब्लिक, दि स्टैट्समैन, दि लाग, इयोन, सिम्पोजियम।
अनुकरण सिद्धांत :
प्लेटो के मत का सारः
1.            कविता जगत की अनुकृति है, जगत स्वयं अनुकृति है अतः कविता सत्य से दोगुनी दूर है।
2.            कविता भावों को उद्वेलित कर व्यक्ति को कुमार्गगामी बनाती है।
3.            कविता अनुपयोगी है। कवि का महत्त्व एक मोची से भी कम है।
               
प्लेटो के अनुसार काव्य के प्रयोजन
1.            सत्य का उद्घाटन
2.            मानव कल्याण एवं राष्ट्रोत्थान
3.            आनंद प्रदान करना                      
4.            शिक्षा देना

प्लेटो ने काव्य का विरोध चार दृष्टियों से किया
1.            नैतिक आधार
2.            भावात्मक आधार
3.            बौद्धिक आधार
4.            शुद्ध उपयोगितावादी

          प्लेटो काव्य का महŸ उसी सीमा तक स्वीकार करता  है, जहां तक वह गणराज्य के नागरिकों में सत्य, सदाचार की भावना को प्रतिष्ठित करने में सहायक हो।
          कला और साहित्य की कसौटी उसके लिए आनंद एवं सौंदर्य होकर उपयोगितावाद थी। वह कहता है- चमचमाती हुई स्वर्णजटित अनुपयोगी ढाल से गोबर की उपायोगी टोकरी अधिक सुंदर है। उसके विचार से कवि या चित्रकार का महŸ मोची या बढ़ई से भी कम है, क्योंकि वह अनुेृति मात्र प्रस्तुत करता है।
          सत्य रूप तो केवल विचार रूप में अलौकिक जगत में ही है। काव्य मिथ्या जगत की मिथ्या अनुकृति है। इस प्रकार वह सत्य से दोगुना दूर है। कविता अनुकृति और सर्वथा अनुपयोगी है, इसलिए वह प्रशंसनीय नहीं अपितु दंडनीय है।
          वह कवि के तुलना में एक चिकित्सक, सैनिक या प्रशासक का महत्त्व अधिक मानता है।
          वह कहता है कि कवि अपनी रचना से लोगों की भावनाओं और वासनाओं को उद्वेलित कर समाज में दुर्बलता और अनाचार के पोषण को भी अपराध करता है। कवि अपनी कविता से आनंद प्रदान करता है  परंतु दुराचार एवं कुमार्ग की ओर प्रेरित करता है इसलिए राज्य में सुव्यवस्था हेतु उसे राज्य से निष्कासित कर देना चाहिए।
          उसका मानना था कि किसी समाज में सत्य, न्याय और सदाचार की प्रतिष्ठा तभी संभव है जब उस राज्य के निवासी वासनाओं और भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए विवेक एवं नीति के अनुसार आचरण करें।
          वह चुनौती देते हुए होमर से पूछना चाहता है कि क्या कविता से किसी को रोगमुक्त कर सकती है? क्या कविता से कोई युद्ध जीता जा सकता हैं? क्या कविता से श्रेष्ठ शासन व्यवस्था स्थापित की जा सकती है ?
          प्लेटो के अनुसार मानव के व्यक्तित्व के तीन आंतरिक तत्त्व होते हैं- बौद्धिक, ऊर्जस्वी एवं सतृष्ण।
          काव्य विरोधी होने के बावजूद प्लेटो ने वीर पुरुषों के गुणों को उभारकर प्रस्तुत किए जाने वाले तथा देवताओं के स्तोत्र वाले काव्य को महत्त्वपूर्ण एवं उचित माना है।

10 comments:

  1. सर प्लेटो और अरस्तू के न्याय सिद्धांत के बारे में भी जानकारी प्रदान करें|

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  2. Sir, Bohut hi saral sabda me samjhaya gaya he, sir i am also a student of JNV SONITPUR ASSAM, and now student of UNIVERSITY OF DELHI. Preparing for JNUEE MAin hindi. please help me-9990323688

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  3. Very nice n concise description 👌

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  4. बहुत सरल, संक्षिप्त और बोधगम्य कर दिया आपने।धन्यवाद!!

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  5. Sir, bahut systematic avam saral dhang se batya Gaya hai

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  6. Bahut hi saral shabdo me vyakt kiya
    Dhanyvaad

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  7. प्लेटो के अनुसार उदात्त झूट क्या है

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